प्रकृति खिलेगी तो आप खेलेंगे

#प्रकृति खिलेगी तो हम खेलेंगे और आप खेलेंगे#

इस बात में बहुत सच्चाई आइए जानते हैं कि हम प्रकृति पे कितना निर्भर हैं हम प्रकृति से कितना प्यार करते हैं  और प्रकृति से  कितना दूर होते जा रहे हैं और प्रकृति हमें क्या देती है प्रकृति ने ही हमें बनाया है  और हम प्रकृति में पथ प्रदर्शन कर रहे हैं इस बात पर कितनी सच्चाई है  इस पर गौर करने की जरूरत है क्योंकि हमें नहीं लगता कि हम  प्रकृति को  बचा रहे हैं  बस नुकसान ही कर रहे हैं और प्रकृति नहीं रहेगी तो हम  इस पृथ्वी पर या जीवन की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी हम सब प्रकृति पर निर्भर हैं प्रकृति के साथ जीना चाहते हैं प्रकृति ने जो व्यवस्था बनाई है उस व्यवस्था को  मानव ने समझा है जाना है और उस व्यवस्था पर अम्ल करके चलना सीखा है अगर प्रकृति नहीं रहती तो क्या इस पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाता जीवन जीने के लिए प्रकृति का साथ होना बहुत जरूरी है क्योंकि प्रकृति ने ऐसे तत्व को शामिल किया है जो हमारे लिए अनिवार्य है जिसे हम और मूल निवासी भाइयों के द्वारा मूलनिवासी समाज के द्वारा प्रकृति शक्ति बड़ादेव के नाम से जाना जाता है और इस बात का सत्य प्रतिशत सत्य है कि आदिवासियों ने ही प्रकृति शक्ति को सबसे पहले पहचाना है और प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना ही प्रकृति सेवा की ओर हमेशा अग्रसर रहते हैं यह बात अलग है कि कुछ मनुवादी सोच के लोगों ने हमे बरगलाने कोशिश की है और हम उनके झांसे पर उनके विचारों पर चल पड़े हैं क्योंकि यह एक सिस्टम पर काम करते हैं (जिसे हमें सोचना होगा प्रकृति को बचाए रखने के लिये क्या मूर्ति , मंदिरो का निर्माण ,अवश्य या ज़रूरी हैं ऐ स्थापना ही जल, वायु, ध्वनि, और ना जाने क्या-क्या प्रदूषित हो रहा हैं आइये संकल्प लीजिय
  #प्रकति खिलेगी तो हम खिलेंगे#
1मूर्ति=10000 पौधों को लगाना होगा
#जल में
          पूजा सामग्री को विसर्जित करने पर रोक
# ऐसे प्लांट जो  वायु को  विषैला करते हैं उन पर प्रतिबंध लगाया जाए और 6 महीने के अंतराल में उस पावर प्लांट के चारों ओर 100000 पौधे लगाने की अनुमति देनी होगी उस पावर प्लांट के प्रबंधक को)

सबसे पहले हमें तो शिक्षा से वंचित कर दिया गया और शिक्षा सबसे बड़ा हथियार होता है यह हथियार से जैसे ही हम वंचित हुए हम उनके साथ साथ प्रकृति का दोहन भी करने लगे हम खुद ही दोषी बन गए आज प्रकृति ने अपना उदाहरण दिखाते हुए यह बता दिया है कि मैं संकट में हूं तो आप भी संकट में कहने का मतलब यही है कि हम खेलेंगे तभी आप खेलेंगे इस विश्व में जितने भी धर्म हो चाहे जितने भी धर्म को मानने वाले लोग धर्मों के लोग इस प्रकृति ,पृथ्वी पर ही रहते हैं पूरा मानव का जीवन इस पृथ्वी पर बसता है और जीवन यापन करता है और पृथ्वी पर ही रहता है यह तो मनुवादी सोच थी कि लोगों ने स्वर्ग और नर्क इस पृथ्वी पर बना डाला यह एक नेगेटिव और पॉजिटिव थॉट पर काम करते हैं हर मनुष्य का दिमाग हमेशा खाली होता है और हम उनके दिमाग में जो बातें ऐड करते हैं उनके दिमागी ब्रेनवाश होता हैं वैसे ही कार्य करने लगते हैं जैसे ब्रेनवाश करने वाला चाहता है क्योंकि मनुष्य को परिवार समाज और जनता इन सब से हमेशा लगे हुए रहते हैं लेकिन से इनको लाभ होता है इंसान को नुकसान भी होता है या कहने का मतलब है नेगेटिव पॉजिटिव थॉट है हम जैसे पेड़ के नीचे रहते हैं या जिस बीज के हम भी बीज होते हैं कुछ हद तक उनका जो सोच होती है वह हम तक जरूर बना रहता है हमारे दिमाग पर हमेशा मंडराता रहता है क्या प्रकृति को नुकसान पहुंचाने से हमारी पृथ्वी पर जितने भी धर्म हैं क्या इस प्रकृति को बचा पाएंगे अगर यह प्रकृति नहीं बचेगी तो क्या हम जीवित रह पाएंगे इस पृथ्वी में और यह प्रकृति ने मानव जीवन को जो सभ्यता और जो व्यवस्थाएं दी है उस व्यवस्था में मानव के हर एक उपचार और दवाएं हैं मनुष्य को संघर्ष करना पड़ता है और संघर्ष से ही दवा मिलता है आपकी सफलता इस प्रकृति मे  ही छुपी हुई है आज मानव को या मनुष्य को जो इस प्रकृति इस पृथ्वी पर निवास करती है मनुष्य को शांति का उपदेश देने के लिए बहुत से ऐसे धर्म है जो शांति के उपदेश से कार्य करते हैं मनुष्य की सफलता और सफलता के बीच धर्म को ला कर खड़ा करते हैं यह भी अच्छी बात है पर धर्म के नाम पर जो प्रकृति को नुकसान हो रहे हैं इसकी भरपाई क्या धर्म कर पाएगी मैं किसी भी धर्म का बुराई नहीं कर रहा हूं चमेरा स्वतंत्र विचार है और सोच है आज मनुष्य के पास इस टेक्नोलॉजी ने समय की मांग को बढ़ा दिया है और समय को देखते हुए मनुष्य अब धर्म से उठता जा रहा है हर साल रोटेशन की तरह हम धर्म की आड़ में अनेक से कार्यक्रम में शामिल होते हैं समारोह पूजा में शामिल होते हैं और ऐसे पूजा समारोह जिससे रासायनिक पदार्थ चलते हैं विषैली गैस और ना जाने कितने प्रदूषण जल प्रदूषण वायु प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण इस पृथ्वी पर ही तो हो रहा है तो क्या प्रकृति को नुकसान नहीं हो रहे हैं मैं आपको एक बात समझाने की कोशिश कर रहा हूं बाकी इसमें आपकी तर्क और समझदारी है तो आप मेरे बातों को बहुत ही अच्छे से समझ पाएंगे मनुष्य आज 8 घंटे तो सोता ही सोता है और अगर वह वर्क करता है तो आज का वर्क 8 घंटे से कम नहीं है बचता  है 8 घंटा और इस 8 घंटे में मनुष्य को मंदिर जाना भी रहता है आर्य वही संस्कार से लोग मंदिर जाते हैं कि हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है हम किताबों को जो कि अच्छी किताब हो जो अच्छे विचार धाराएं हो ऐसे किताबों को हम प्राथमिकता ना देते हुए हम एक अंधविश्वास की ओर जा पढ़ते हैं क्योंकि इंसान भीड़ को देखता है जहां लोग ज्यादा होते हैं लोग तर्क नहीं लगाते हैं कि हम नया क्या कर सके जो प्रकृति को सुरक्षित और स्वस्थ रख सकें मैं तो यही मानता हूं दोस्तों कि जब तक प्रकृति है तब तक हम हैं कहने का मतलब है प्रकृति के लेगी तो हम खेलेंगे इस अंधविश्वास के पाखंड ने पूरे प्रकृति को जकड़ रखा है

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