*गोंड गोंडी गोंडवाना के शिल्पकार - व्यंकटेश आत्राम दाऊ* *स्मृति दिवस पर विशेष* 02 अक्टूबर

#गोंडवाना_के_महान_गोंडी_शिल्पकार_व्यंकटेश #आत्राम दाऊ आपके स्मृतिदिवस पर आपको जीवातल कोटि कोटि सेवा जोहार ।।

*गोंड गोंडी गोंडवाना के शिल्पकार - व्यंकटेश आत्राम दाऊ* 
  *स्मृति दिवस पर विशेष* 

सर्वप्रथम विश्व की प्रथम सभ्यता गोंडवाना को सादर सेवा जोहार । एक ऐसी सभ्यता जिसकी अपनी मातृभूमि , अपनी भाषा , अपनी सभ्यता ,अपने रीति -रिवाज ,नेंग सेंग ,दस्तूर थे। वह गोंडवाना जिसका अपना स्वर्णमयी गौरवशाली इतिहास था। जिसकी गाथा कुयवाराष्ट्र ,सयुंगारदीप , कोयामर्री दीप के चप्पे -चप्पे में गुंजायमान हुआ करती थी।  कोयामर्री अर्थात कोयतुरों का देश । शुद्ध खून , शुद्ध आबो हवा , जिसका संबंध सीधे निसर्ग से था। एक सभ्य संस्कृति, एक सभ्य भाषा , और गौरवमयी इतिहास की सामुदायिक श्रृंखला , जो कि गंगा से गोदावरी तक कोयनार से मेलघाट वेनांचल से लेकर पेनांचल तक समूचा गोंडवाना था । केवल गोंड गोंडी गोंडवाना की विशाल सभ्यता थी । ऐसे महान गौरवशाली समुदाय में सशक्त कोयतुर शिल्पी का नाम था व्यंकटेश आत्राम ।आप एक महान *तर्कशास्त्र के ज्ञाता,* भाषाविद, साहित्यकार, लेखक और गोंडी / कोयापुनेमी शिल्पकार थे। आपने अपने तर्क के बल पर गोंडी साहित्य को नवजीवन दिया।आपने गोंडवाना के बुझते दिए को अपनी विद्वता से प्रकाशमान किया और वैज्ञानिक ढ़ंग से धरातल पर रखकर प्रगतिवाद , रहस्यवाद , तर्कवाद ,प्रयोगवाद की कतिपय विशेषताओं को आत्मसात करते हुए एक मजबूत आधार खड़ा किया । इसके लिए आपने हर चुनौतियों को गले लगाया , अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाए और अपने बुद्धिमत्ता का परिचय देकर गोंड गोंडी गोंडवाना के साहित्य को जीवंत कर दिया । 

गोंडी साहित्य के सृजनकार हो आप । आप गोंडी साहित्य के शिल्पकार हो। ऐसे महान पेनपुरखा का आज स्मृतिदिवस है आपको कोटि कोटि सेवा जोहार।

व्यंकटेश आत्राम जी का जन्म दिन शुक्रवार 15 जनवरी 1943 को ग्राम किरजावला, तहसील चांदुर अमरावती महाराष्ट्र में हुआ था।  आप विलक्षण प्रतिभा के धनी ,कुशाग्र बुध्दि, तार्किक, उतने ही शांत , संयमी, निर्भीक ,  अनुशासित प्रवृति के थे ।  आपका बचपन गोंडी भाषा में बीता । कारण था आप शुद्ध कोयतुड़ परिवार में जन्में थे। परिवार मे सभी गोंडी बोलते थे। आप कोयावंश के चश्मो चिराग थे । आपके परिवार का पूरा वातावरण कोया पुनेम पर आधारित था। अतः आप पर कोया पुनेम जीवन दर्शन का अधिक प्रभाव पड़ा। आप मूंजोक सिद्धांत को जानते थे।  
प्राथमिक शिक्षा आपने अमरावती से ली। आपने अपने कुशाग्रबुद्धि होने के कारण बी.ए .की शिक्षा पूर्ण की । आपकी बचपन से ही साहित्य के प्रति  रूचि होने के कारण कालेजों में कविता , लेख ,अभिव्यक्ति के कुछ अंश पुटित होते हैं जो आगे चलकर साहित्यिक आंदोलन की ज्वाला में कूद पड़े। राजनीतिक चेतना के साथ -साथ   अपने  समय  की  साहित्यिक  - सामाजिक  और दार्शनिक  , बहसों  ने  मस्तिष्क पटल  पर  मंथन  कर  तर्क  करना  आरंभ  कर दिया  था  । आप प्रसिद्ध मराठी  साहित्यकार  श्री भाऊराव मांडवरकर  जी  ,  विट्ठलराव  मसराम  जैसे  महान  चिंतनकारों  के संपर्क  में  आए  , जिसमें विट्ठलराव मसड़ाम जी के विचारों का गहरा  असर  पड़ा।   जिसके  कारण  आपने  पत्रकारिता का पथ चुना और एक पत्रकार की भूमिका  में  कई  ठोकरों ,आघातों  को पार करते हुए आत्मघाती  संघर्ष  किए , आपने अपने  कभी  हार  नहीं  मानी  बल्कि  जीवन  के  संघर्ष  पथ  पर बढ़ते  हुए  सभी  जटिलताओं  का मुहतोड़  जबाब  दिया  । आपकी प्रखर  विद्वता  , वैज्ञानिक समझ ने  पाखण्डवाद  की  लड़ाई  को  ध्वस्त  किया  ,  आपकी संघर्षशीलता  ने  समाज  को  मुखर  किया ,  हजारों वर्षों  की कंदराओं  में , गुफाओं  में , सघन जंगलों  में प्रवेश कर आपने   कोया  पुनेम के रहस्य  को  लेखनी  के माध्यम से   सगाजनों   तक  पहुंचाने  का प्रयास  किया  ।आपने गोंडी  साहित्य का सृजन किया  साथ ही मराठी में भी लिखते रहे। आपने कोयतुर सभ्यता को बारीकी से समझा और अपनी कुशाग्रता का परिचय देते हुए साहित्यिक कृतियों को पुनर्जीवित किया आपने जो जिया ,जिन जटिलताओं से सीधा साक्षात्कार किया उसे साहित्य में संजोने की कोशिश की ।

आपने शब्द साधना और विशिष्ट शिल्प की अलग पहचान बनाई, गोंडी, संस्कृत, अंग्रेजी और मराठी की शब्द संपदा से उदारतापूर्वक शब्द ग्रहण किए और साहित्यिक भाषा को अपने ही व्याकरण और अनुशासन में बांधा , शब्दों को पिरोकर , शुद्धता के तरकस में संजोया , और हजारों वर्षों के मिथको, अंधविश्वासों को त्यागकर सही और तार्किक सत्य को सामने रखा । 

आपकी रचनाओं को एक ओर सराही गई तो वहीं आप आक्षेप और आरोप भी लगते रहे।  कारण था सत्य  सदा  कडुआहट लेकर  आता  है   किंतु  बाद  में हितकर  होता  है।   आप समाजवाद  के  सृजनकार  हो  । आप  सार्वभौमिक  हो   आप। प्रखर  चिंतक  ,आलोचक ,  निर्भीक  साहित्यकार होने  के साथ  साथ  गंभीर  साहित्यिक चिंतनकार की भूमिका  में  भी  दक्ष  थे। आपका समकालीन  गोंडी ,मराठी  साहित्य  में योगदान  उत्कृष्ट एवं अतुलनीय  रहा  है, जो कोयतुर समुदाय में 
सदैव स्मरणीय रहेगा आपका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता । आपने आजीवन गोंड गोंडी गोंडवाना को नवजीवन दिया है और गोंडी शिल्पी के रूप में समुदाय को प्रकाशित आलोकित किया है। इसके लिए हमारा कोयतुर समाज आपका सदा ऋणी रहेगा। आप  गोंडवाना के प्रथम शिल्पी हो आप ओजस्वी वक्ता , और गोंडवाना के प्राचीन इतिहासकार तथा भाषा के विद्वान महान तर्कशास्त्री हो आपको कोटि कोटि सेवा जोहार।  आपका निधन दसेरा के दिन अमरावती के  इर्विन अस्पताल में मध्यरात्रि मे हुआ और आप वेनरूप से पेनजीवा हो गये। आप सदैव पेनजीवा के रूप में याद रहेंगे।। 

आज मैं भाषा को लेकर बहुत आंदोलित हूं। भाषा मां होती है मां पुकार कर रही किंतु आज अपने ही लोग अपनी मां को दुत्कार रहे है। मां व्यथित है व्याकुल है। किंतु शहरी चकाचौंध ने अपनी सभ्यता को भी ग्रास लिया। आज भाषा के शिल्पी व्यंकटेश आत्राम दाऊ की सौगंध जब तक जीवन रहेगा  मातृभाषा के लिए काम करता रहुंगा। 
आपके पुण्यतिथि पर एक संकल्प हम सबको लेना चाहिए  हम अपनी मातृभाषा को दफन नहीं होने देंगे। विश्व की प्राकृतिक भाषा जिसे जीव जंतु जड़ चेतन सभी बोलते थे । जिसे हर कोई नही समझ सकता । 

 गोंडी भाषा वह प्राकृतिक भाषा है जिससे  आप शक्तियों से जुड़ सकते है। किंतु हम शक्तियों को छोंड व्यक्तियों के पीछे दौड लगा रहे। ऐसे में गोंड गोंडी गोंडवाना कमजोर होता जा रहा।  आज संकल्प ले हम कि हम अपनी मातृभाषा को पुनर्जीवित करेंगे यही आज उस महान  गोंडी शिल्पकार  को हमारी  सच्ची श्रद्धांजलि  होगी ।। 
                 - बुद्धम श्याम 
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अम्बिकापुर ,सरगुजा ,छत्तीसगढ़
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