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गोंड राजा चक्रधर सिंह पोर्ते का जन्म 19 अगस्त, 1905 को रायगढ़ रियासत में हुआ था

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 राकेश सांडिल रायगढ रियासत ब्रिटिशराज के समय भारत की एक रियासत (प्रिंसली स्टेट) था। यह गोंड राजा चक्रधर सिंह पोर्ते का जन्म 19 अगस्त, 1905 को रायगढ़ रियासत में हुआ था के राजाओं द्वारा शासित थी। इसकी स्थापना १६२५ में हुई थी। १९११ में अंग्रेजों ने इसे रियास्त के रूप में मान्यता दी। भारत सरकार में शामिल होने वाला सबसे पहला रियासत रायगढ़ रियासत था ।जिनको उस समय के वर्तमान राजा ललित सिंह थे ।राजा ललित सिंह जी बहुत बड़े दानी थे । राजा ललित सिंह ने रायगढ़ के विकास के लिए बहूत ज़मीन अपने प्रजा को दिए और विकास करवाया ।वो महाराजा चक्रधर सिंह के पुत्र थे ।महाराजा चक्रधर सिंह संगीत और कला में बहुत काम किये ।जिसके कारण रायगढ़ रियासत को पहचान मिली ।रायगढ़ में आज भी चक्रधर समारोह पूरे 10 दिन हर्षउल्लाष के साथ मनाया जाता है । गोंड राजा चक्रधर सिंह पोर्ते का जन्म 19 अगस्त, 1905 को रायगढ़ रियासत में हुआ था । नन्हें महाराज के नाम से सुपरिचित, आपको संगीत विरासत में मिला । उन दिनों रायगढ़ रियासत में देश के प्रख्यात संगीतज्ञों का नियमित आना-जाना होता था । पारखी संगीतज्ञों के सान्निध्य में श...

प्रकृति खिलेगी तो आप खेलेंगे

#प्रकृति खिलेगी तो हम खेलेंगे और आप खेलेंगे# इस बात में बहुत सच्चाई आइए जानते हैं कि हम प्रकृति पे कितना निर्भर हैं हम प्रकृति से कितना प्यार करते हैं  और प्रकृति से  कितना दूर होते जा रहे हैं और प्रकृति हमें क्या देती है प्रकृति ने ही हमें बनाया है  और हम प्रकृति में पथ प्रदर्शन कर रहे हैं इस बात पर कितनी सच्चाई है  इस पर गौर करने की जरूरत है क्योंकि हमें नहीं लगता कि हम  प्रकृति को  बचा रहे हैं  बस नुकसान ही कर रहे हैं और प्रकृति नहीं रहेगी तो हम  इस पृथ्वी पर या जीवन की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी हम सब प्रकृति पर निर्भर हैं प्रकृति के साथ जीना चाहते हैं प्रकृति ने जो व्यवस्था बनाई है उस व्यवस्था को  मानव ने समझा है जाना है और उस व्यवस्था पर अम्ल करके चलना सीखा है अगर प्रकृति नहीं रहती तो क्या इस पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाता जीवन जीने के लिए प्रकृति का साथ होना बहुत जरूरी है क्योंकि प्रकृति ने ऐसे तत्व को शामिल किया है जो हमारे लिए अनिवार्य है जिसे हम और मूल निवासी भाइयों के द्वारा मूलनिवासी समाज के द्वारा प्रकृति शक्ति बड़ादेव के नाम से जाना ज...

गोंडी भाषा में, (आदिवासी बच्चों के नाम) बच्चों के नाम

कोयारानी - मां की कोख से जन्मा रानी  सुर्कान्सी - मंगलमय हो मां का अंश यायाल - मां  अदसारूंग -  कोयांसी  - मां की कोख का अंश  आरून्दी - 

*गोंड गोंडी गोंडवाना के शिल्पकार - व्यंकटेश आत्राम दाऊ* *स्मृति दिवस पर विशेष* 02 अक्टूबर

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#गोंडवाना_के_महान_गोंडी_शिल्पकार_व्यंकटेश #आत्राम दाऊ आपके स्मृतिदिवस पर आपको जीवातल कोटि कोटि सेवा जोहार ।। *गोंड गोंडी गोंडवाना के शिल्पकार - व्यंकटेश आत्राम दाऊ*    *स्मृति दिवस पर विशेष*  सर्वप्रथम विश्व की प्रथम सभ्यता गोंडवाना को सादर सेवा जोहार । एक ऐसी सभ्यता जिसकी अपनी मातृभूमि , अपनी भाषा , अपनी सभ्यता ,अपने रीति -रिवाज ,नेंग सेंग ,दस्तूर थे। वह गोंडवाना जिसका अपना स्वर्णमयी गौरवशाली इतिहास था। जिसकी गाथा कुयवाराष्ट्र ,सयुंगारदीप , कोयामर्री दीप के चप्पे -चप्पे में गुंजायमान हुआ करती थी।  कोयामर्री अर्थात कोयतुरों का देश । शुद्ध खून , शुद्ध आबो हवा , जिसका संबंध सीधे निसर्ग से था। एक सभ्य संस्कृति, एक सभ्य भाषा , और गौरवमयी इतिहास की सामुदायिक श्रृंखला , जो कि गंगा से गोदावरी तक कोयनार से मेलघाट वेनांचल से लेकर पेनांचल तक समूचा गोंडवाना था । केवल गोंड गोंडी गोंडवाना की विशाल सभ्यता थी । ऐसे महान गौरवशाली समुदाय में सशक्त कोयतुर शिल्पी का नाम था व्यंकटेश आत्राम ।आप एक महान *तर्कशास्त्र के ज्ञाता,* भाषाविद, साहित्यकार, लेखक और गोंडी / कोयापुनेमी श...